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गंगा नदी

गंगा नदी , हमारे हिन्दू ग्रंथो, पुराणों और शास्त्रों में एक बहुत ही पवित्र नदी कही गई है और मान्यताओं के अनुसार गंगा को देवी गंगा या माँ गंगा कहा जाता है, जिन्हे कई मंदिरों में सफ़ेद साड़ी पहने और मगर पर सवार दिखाया जाता है। महाभारत में, गंगा – भीष्म की माता है और इसलिए भीष्म को गंगा पुत्र भीष्म भी कहा जाता था। कई ग्रंथों और कहानियों के अनुसार, भगवान स्कन्द – यानी कार्तिकेय भी माँ गंगा के ही अंश पुत्र है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, गंगा का प्राकट्य – भगवान विष्णु के वामन अवतार के समय उनके चरणों से हुआ था, वहीं पौराणिक काल में एक महान राजा – भागीरथ, भगवान शिव की तपस्या कर, गंगा मैया को धरती पर लाये जिससे कई प्राणियों, जीवों का उद्धार हो सके , पर उनके तीव्र वेग को सहने में धरती सक्षम नहीं थी,

इसलिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बांध कर उनकी गति कम कर दी जिससे धरती पर आकर वे समस्त प्राणियों का उद्धार कर सके। दोस्तों ये कथा, कहानियां हज़ारों सालो से पीढ़ी दर पीढ़ी कही और सुनाई – चली आ रही है और बचपन में कभी न कभी हमने भी ये कहानियाँ पड़ी या सुनी होंगी। हम सभी गंगा मैया की कहानियां एवं उनके महत्व को जानते है और समझते है पर क्या आप जानते है, कि कई मुग़ल बादशाह भी गंगा के पानी को अत्यधिक महत्व देते थे।

Ain-i-Akbari
Ain-i-Akbari

अकबर के बारे में हम सभी ने खूब पढ़ा है और अनेकों बार धारावाहिकों में एवं फिल्मों में ही उनके जीवन से जुड़े कई प्रसंग देखे और सुने है, पर क्या आप ये जानते है की अकबर सिर्फ गंगा का पानी ही पीते थे यहाँ तक की उनका खाना भी गंगा के पानी में ही पकता था। जी हाँ दोस्तों ! ऐसा हम नहीं, ऐसा ऐतिहासिक लेख और पुस्तकें कहती है। चलिए इस बात को थोड़ा और गहराई में जानते है।

गंगा नदी

अकबर के मुख्य वज़ीर – अबुल फज़ल ने अपनी किताब “आइन-ए-अकबरी” में अकबर का गंगाजल के प्रति स्नेह और मोहब्बत के बारे में विस्तार से लिखा है। वे लिखते है कि अकबर, पीने के लिए गंगाजल इस्तेमाल में लेते थे। जब अकबर आगरा और फतेहपुर सीकरी में होते थे तब उनके लिए ये जल “सोरों” – जो कि उत्तर प्रदेश में, गंगा किनारे स्थित एक शहर है – वहां से लाया जाता था। और जब वे लाहौर में थे तब हरिद्वार से उनके लिए गंगाजल पहुंचाया जाता था। यमुना या चेनाब नदी के पानी में गंगाजल मिलाकर, अकबर के लिए खाना पकाया जाता था।

इतिहासकारों की माने तो न सिर्फ अकबर बल्कि बाबर और हुमायूँ भी गंगाजल के कायल थे और उसे आब – ऐ – हयात यानी जन्नत के पानी जैसा मानते थे। इतिहासकार डॉक्टर रामनाथ जी अपनी किताब “प्राइवेट लाइफ ऑफ़ मुग़ल्स” में लिखते है कि अकबर जहां भी हो, चाहे महल में या यात्रा पर, वो गंगाजल ही पीते थे, उनकी पानी की सुरक्षा के लिए सदैव कुछ सैनिक गंगा के किनारे तैनात रहते थे जो हर रोज़ गंगाजल को सील किये हुए बड़े बड़े जार/मर्तबान में भरकर बादशाह तक पहुंचाते थे। दोस्तों, बाबर जब भारत आया, तब वो सबसे ज़्यादा काबुल के ठन्डे और मीठे पानी को याद करता था, लेकिन उसने गंगा के पानी को, काबुल के ठन्डे पानी के विकल्प के रूप में चुना और न सिर्फ पसंद किया बल्कि उन्नत भी माना। उसी की तरह उसके पुत्र, हुमायूँ ने भी गंगाजल को ही अपनी पहली पसंद माना और यमुना, जो कि दिल्ली और आगरा से होकर गुजरती थी, उसको दूसरा विकल्प चुना। दोस्तों, गंगा के पानी को चुनना इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्युकी उसे ज़्यादा समय तक संरक्षित कर, रखा जा सकता था

क्युकी यह माना जाता था कि उसके पानी में बैक्टीरिया नहीं पनपते। मुग़ल इस बात को समझते थे और इसलिए इस नदी के पानी को अधिकतर पीने के उपयोग में लेते थे लेकिन जिसने गंगा के पानी को सबसे ज़्यादा महत्व दिया वो था अकबर , उसी ने उस समय मुग़लों में गंगाजल को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया क्योंकि वो गंगा के अलावा और किसी भी नदी का पानी नहीं पीता था। अकबर ने कई घुड़सवारों को सिर्फ इसी काम पर लगा रखा था कि वे उसके लिए, हरिद्वार और ऋषिकेश से पानी भर कर आगरा और दिल्ली तक पहुंचाते रहे।

 प्रयागराज  prayagraj  ganga ghat

गंगाजल के प्रति इसी लगाव के कारण उसने गंगा के किनारे ही एक छोटा क़स्बा जिसका नाम प्रयागराज था, उसे और विकसित किया और उसका नाम अलाहबाद रखा गया। खान – पान और धार्मिक कारणों से अगर देखें तो हज़ारों सालों से गंगा जल को पवित्र और दिव्य जल की श्रेणी में रखा जाता है, आज भी आप हमारे देश के लगभग हर घर में गंगा जल को किसी न किसी ताम्बे के बर्तन में रखा ही पाएंगे। दोस्तों, एक पुर्तगाली चिकित्सक – ग्रेस देउरटा, जो लगभग 1543 – 1544 के दौरान भारत की यात्रा पर था, काफी समय बिताने और खोज करने के बाद उसने ये लिखा की गंगा के जल में एंटी – बैक्टीरियल गुण है और ये काफी समय तक खराब नहीं होता। कुछ वर्षो बाद, ब्रिटिश चिकित्सक सी एल नेल्सन ने भी अपने शोध के दौरान ये माना की गंगा जल, शरीर के स्वस्थ्य के लिए सर्वोत्तम है। सदियों तक की गयी, कई शोध और खोज के बाद यही परिणाम देखने को मिले कि गंगा जल में ऐसे पदार्थ पाए जाते है जो उसे आसानी से दूषित नहीं होने देते और लम्बे समय तक उस पानी के गुणों को सुरक्षित रखते है ।

मगर आज जो हमारी गंगा की हालत है, उसे उस समय के लोग अगर इतिहास से निकल कर देखे, तो उसे इतना प्रदूषित देख, दुखी हो कर, दोबारा मर जाएंगे। एक समय जिसके पानी को अमृत कहा जाता था , जिसे लोग स्वर्ग का पानी मानते थे, ऐसे शुद्ध और मीठे पानी वाली गंगा नदी की आज जो लोगों ने दुर्दशा की है वो बहुत ही संवेदना जनक है। आज गंगा, दुनिया विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है, उत्तराखंड के कुछ स्थानों को छोड़ दे तो इस ढाई हज़ार किलोमीटर लम्बी नदी में कहीं भी पीने योग्य पानी नहीं है।

फ़ैक्टरिओं से निकला गन्दा कचरा और पानी, आसपास की मानवीय बस्तियाँ और शहरों से निकलते सीवर, और कुछ धार्मिक अनुष्ठानों से उत्पन्न गंदगी के कारण, आज इस पवित्र मानी जाने वाली नदी की यह हालत है कि इसका जल न सिर्फ इंसानों और जानवरों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर रहा है, और इन सब के बावजूद – इस बर्बादी का जो मूल कारण है , यानी मनुष्य – वह अपने द्वारा फैलाये इस प्रदुषण द्वारा आने वाले अंधकारमय भविष्य को देखने में नाकामयाब है।