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बिम्बिसार

बिम्बिसार, मगध साम्राज्य के सम्राट थे जिन्होंने हर्यक वंश की स्थापना की और उनका शासनकल 558 ईसा पूर्व से 491 ईसा पूर्व तक रहा। बिम्बिसार बौद्ध धर्म के अनुयाई थे,लेकिन बाद में उन्होंने रानी चेलमा के उपदेशों से प्राभावित होकर जैन धर्म अपना लिया। आइये इनके बारे में थोड़ा विस्तार से जानते है। बिम्बिसार की जीवनी बहुत अद्भुद रही हैं, मगध जैसे नगर के विस्तार का प्रमुख श्रेय इन्ही को जाता है। इनके शासनकाल के दूरगामी परिणाम भी मिले और मौर्य साम्राज्य जैसे विशाल साम्राज्य को स्थापित करने में बहुत मदद मिली। दोस्तों, इतिहास के पन्नो को अगर खंगाला जाए तो मगध का सबसे पुराना वर्णन, हमें महाकाव्य “महाभारत” में मिलता है।

बिम्बिसार

इतिहास मैं लगभग छह सौ ईसा पूर्व, भारत में १६ प्रमुख प्रदेश थे जिन्हें महाजनपद कहा जाता था। इनके नाम और राजधानी कुछ इस प्रकार है, पहला – अंग प्रदेश, जो आज के बिहार के मुंगेर और भागलपुर में फैला हुआ था, एवं इस प्रदेश की राजधानी चंपा थी। दूसरा था मगध – जो आज के बिहार में ही, गया और पटना क्षेत्र में फैला हुआ था एवं इसकी राजधानी थी राजगृह।

तीसरा था काशी – आज जिसे बनारस के नाम से जानते है, उस समय आस पास के कई शहर इस महाजनपद में आते थे। चौथा था वत्स, आज जिसे प्रयागराज कहते है, उसकी राजधानी कौशाम्बी थी। पांचवा महाजनपद था कौशल, जो आज के अयोध्या प्रान्त और उसके आस पास के क्षेत्र में फैला हुआ था, इसकी दो राजधानी थी – श्रवस्ती और कुशावती। छठवा था शुरासेन, इसकी राजधानी मथुरा थी। सातवां था पांचाल, ये अभी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैला हुआ था, इसकी दो राजधानी थी – पहली थी अहिच्छत्र, जिसे आज हम बरैली के नाम से जानते है, और दूसरी थी काम्पिल्य, जो आज के समय फर्रुक्खाबाद से जानी जाती है। कन्नौज शहर भी इसी महाजनपद का हिस्सा था। आठवां था कुरु महाजनपद, जो आज के दिल्ली, मीरुत और हरयाणा में फैला हुआ था, इसकी राजधानी थी इंद्रप्रस्थ।

बिम्बिसार

नौवां था मत्स्य प्रदेश, जिसकी राजधानी थी विराटनगर, और ये आज के राजस्थान के जयपुर, अलवर और भरतपुर जैसे शहरों में फैला हुआ था। दसवां था चेदि राज्य, जो मध्य भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में फैला हुआ था एवं इसकी राजधानी थी शोधिवति। महाभारत में शिशुपाल को यही का राजा बताया गया है।

ग्यारवा था अवन्ति, जो आज के मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में फैला हुआ था एवं इसकी राजधानी थी उज्जैनी या महिष्मति। अगला महाजनपद था गांधार और इसकी राजधानी तक्षिला थी ये आज के पाकिस्तान, कश्मीर, और अफ़ग़ानिस्तान में फैला हुआ था। तेरवां था, कम्बोज और इसकी राजधानी पूँछ थी, यह आज के पाकिस्तान और कश्मीर में फैला हुआ था। अगला था अस्माका, यह गोदावरी के किनारे फैला हुआ राज्य था और इसकी राजधानी थी पोटली।

पन्द्रहवां था वज्जि, जो बिहार के उत्तरी क्षेत्र में फैला हुआ था एवं इसकी राजधानी थी वैशाली। और आखिरी था, मल्ला जिसकी राजधानी पावा और कुसिनार थी। दोस्तों बिम्बिसार १५ वर्ष की आयु में राजा बने, मत्स्य पुराना और अथर्वेद में इसका वर्णन मिलता है। मत्स्य पुराण में इन्हे क्षैत्रोजस और जैन साहित्य में श्रेणिक कहा गया है। इनके समय सभी महाजनपद पृथक थे और कई राज्यों में आपसी युद्ध चलता रहता था परन्तु बिम्बिसार ने शुरू से ही साम्राज्य विस्तार पर ध्यान देना शुरू कर दिया था ।

कुछ राज्यों को जीता, कुछ से दोस्ती का हाथ मिलाया और कुछ को शादी का प्रस्ताव रख कर संधि की और मगध का विस्तार किया। इनकी ख्याति दूर दूर तक पहुंचने लगी थी। कई इतिहासकारों का मानना है कि बिम्बिसार ने 500 से भी अधिक रानियों से विवाह किया था। इतने विवाह करने का उद्देश्य साम्राज्य विस्तार करना था। हालाँकि इतिहास में तीन रानियों का विशेष उल्लेख मिलता है। सर्वप्रथम इन्होने कौशल प्रदेश के राजा प्रसेनजीत की बहन महाकोशला से विवाह किया था, जिसका नाम रानी कोशाला देवी था।

दूसरा विवाह इन्होंने रानी चेल्लना से किया जो कि वैशाली के राजा चेतक की पुत्री थी। तीसरा विवाह इन्होने ने पंजाब प्रांत के मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा से भी विवाह किया था। अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अलग-अलग राजा अलग-अलग तरह की रणनीति का उपयोग करते हैं वैसे ही राजा बिंबिसार ने बड़े-बड़े राजवंशों में विवाह करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया था और बदले में उन्हें कुछ क्षेत्र भी मिला और सम्मान भी मिला।

इस तरह धीरे-धीरे बिंबिसार द्वारा साम्राज्य का विस्तार किया गया और पूर्व के अंग प्रदेश को जीतकर उसका राज्य अपने पुत्र कुणिक यानि अजातशत्रु को वह का शाशक बनाया और जब अवन्ति प्रदेश के राजा चंद प्रद्योत बीमार हुए तब उस समय के सबसे कुशल वैद बिम्बिसार के राज वैद जीवक को माना जाता था, बिम्बिसार को जब उनकी बिमारी का समाचार प्राप्त हुआ, उन्होंने बिना देर किये जीवक को, अवन्ति के राजा के उपचार के लिए भेज दिय। जीवक के उपचार से, अवन्ति नरेश स्वस्थ हो गए और बिम्बिसार को कई भेंटों के साथ मैत्री का प्रस्ताव भी भेजा, जिसे बिम्बिसार ने स्वीकार कर एक और राज्य से मित्रता की साम्राज्यवाद नीति से मगध की ख्याति बढ़ाई और विस्तार किया।

बिम्बिसार एक कुशल शाशक थे, उनके शासनकाल में प्रजा सुखी, उन्नत, खुशहाल और धन-धान्य से परिपूर्ण थी। वे प्रजा का पुरा ख्याल रखते थे साथ ही उनके प्रशासन में शामिल कर्मचारियों पर भी उनकी विशेष नजर रहती थी। बिम्बिसार ने प्रशासनिक कार्यों को आसानी के साथ संचालित करने के लिए अलग-अलग वर्गों में बांट रखा था। इनकी प्रशासनिक व्यवस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने प्रत्येक कार्यक्षेत्र को अलग-अलग श्रेणियों और लोगों में बांट रखा था, और इस समय ना सिर्फ सेना बल्कि न्यायपालिका बहुत ही न्यायोचित थी, एक छोटे से छोटे व्यक्ति की बात को भी सुना जाता था और समस्या का समाधान किया जाता था। यही वजह रही कि बिंबिसार के राज में मगध साम्राज्य ने निरंतर विस्तार किया और लोगों का विश्वास भी जीता।

बचपन से ही राजा बिम्बिसार की रूचि बौद्ध धर्म में थी और वे बौद्ध धर्म को मानते थे। बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार में बिम्बिसार ने कोई कमी नहीं रखी। ऐसा कहा जाता है कि बिंबिसार ने सन्यासी गौतम बुद्ध, का प्रथम दर्शन पांडव पर्वत के नीचे किया, साथ ही उन्हें अपने राजभवन में भी आमंत्रित किया था मगर गौतम बुद्ध ने इनका निमंत्रण स्वीकार नहीं किया और निर्वाण प्राप्त करने के उद्देश्य में अपनी राह पर चलते रहे। निमंत्रण अस्वीकार करने पर राजा बिंबिसार उदास नहीं हुए उन्होंने गौतम बुद्ध को उद्देश्य प्राप्ति के लिए शुभकामनाएं दी और उद्देश्य प्राप्ति के बाद राजगीर यानि अपनी राजधानी आने का निमंत्रण दिया।

कई वर्ष बीत जाने के बाद गौतम बुद्ध राजगीर में आए। इस तरह प्रारंभ से लेकर लगभग 30 वर्षों तक राजा बिंबिसार बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए कार्य किया। हालाँकि बिम्बिसार की पत्नी चेल्लमा जैन धर्म को मानती थी, बिम्बिसार ने जब रानी चेल्लमा के उपदेश सुने तो बहुत प्रभावित हुए, और जैन धर्म अपना लिया। हालाँकि ऐसे कुशल शाशक का अंत बहुत ही दुखद था।

इनकी मृत्यु के बारे में इतिहास में कई अलग अलग कथाएं मिलती है। एक कथा के अनुसार जल्द ही राज्य की कमान हासिल करने के लिए युवराज अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार की हत्या क्र दी। ऐसा माना जाता है कि सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के चचेरे भाई देवदत्त ने बिम्बिसार के खिलाफ षड्यंत्र रचा और युवराज अजातशत्रु को उकसाया, देवदत्त के बहकावे में आकर अजातशत्रु ने बिंबिसार की हत्या कर दी।

हालाँकि जैन ग्रंथ के अनुसार, बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने राज्य हथियाने के लिए अपने पिता बिंबिसार को कैद खाने में डाल दिया जहां पर उनकी देखरेख बिम्बिसार की पत्नी चेल्लना ने की। एक अन्य कथा के अनुसार, बिम्बिसार अपने पुत्र अजातशत्रु के हाथो नहीं मरना चाहते और उन्होंने जहर खा लिय। इतिहास में बिम्बिसार की मृत्यु को लेकर एक और घटना का जिक्र मिलता है जिसके अनुसार उनके पुत्र अजातशत्रु ने उन्हें कैद खाने में कई दिनों तक भूखा प्यासा रखा जिससे उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बारे में, कई इतिहासकार अपनी अपनी राय रखते है लेकिन और सभी को पढ़कर यही समझा जा सकता है की उनकी मृत्यु का कारण उन्ही का पुत्र अजातशत्रु था। जो अपने पिता की तरह ही शक्तिशाली था और कुशल शाशक था और आगे चलकर इसने कई महाजनपदों को जीतकर मगध में मिलाया एवं अपने साम्राज्य का विस्तार किया।