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hanuman ji
"अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, 
अस वर दीन जानकी माता!"

आठों सिद्धियों और नौ निधियों को देने वाले है श्री हनुमान जी, ऐसा माता सीता ने इन्हें वर दिया है। इसके अलावा नौ व्याकरण के ग्यानी भी है हनुमान जी। सभी सिद्धियों, निधियों, और व्याकरण के ज्ञान को सूर्य देवता से संपूर्ण रूप से जानने के लिए, ऐसा कहा जाता है, की इन्हे सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला से विवाह भी करना पड़ा था और दोनों ही विवाह उपरांत भी ब्रह्मचारी ही रहे । तेलांगना के खम्मम जिले में स्थित हनुमान मंदिर में हमें श्री हनुमान और देवी सुवर्चला की प्रतिमा देखने को मिलती है ।

ब्रह्मचारी होते भी उन्हें विवाह क्यों करना पड़ा ?

वो कहानी हम आपको किसी और दिन सुनाएंगे। आज के वीडियो में हम जानेंगे की क्यों समस्त देवी – देवता, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, सभी हनुमान जी के विद्या अर्जन पर इतना ज़ोर देते रहे और क्यों इन्हे इतना ज्ञान अर्जित कराने में सभी लोगों ने अपनी अपनी भूमिका निभाई । दोस्तों, जैसा की हम जानते है की(कि) सनातन धर्म में, ब्रह्मा और इन्द्र, श्री विष्णु और भगवन(भगवान) शंकर की तरह कोई एक देवता नहीं है, जो सदैव सदा के लिए ब्रह्मा या इन्द्र बने रहे । जी हाँ !, कई पुराणों एवं श्रीमदभागवतम(श्रीमद् भागवत कथा) के अनुसार, ब्रह्मा की उत्पत्ति श्री महाविष्णु की नाभि से हुई है।

हनुमान जी

उन्होंने 14 मनु की उत्पत्ति की, जिसमे हर एक मनु को कुछ दिव्य वर्षो तक सृष्टि का नियंत्रण करने का दायित्व सौंपा गया। इन 14 मनु के नाम इस प्रकार है; स्वयंभुव मनु, जो की सबसे पहले मनु है, इन्हीं ने मनुस्मृति नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके मूल मनुस्मृति के अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ वरण होता था (वरण करना का अर्थ है धारण करना स्वीकार करना। अर्थात जिस व्यक्ति ने जो कार्य करना स्वीकार या धारण किया वह उसका वर्ण कहलाया और आज जाति में विभाजित कर मूल धारणाओं का नाश ही कर दिया है ।

उनके बाद स्वरोचिष मनु, फिर उत्तम मनु, उनके बाद तामस मनु हुए जिन्हे तापस मनु भी कहा जाता है, फिर रैवत मनु, उनके बाद चाक्षुषी मनु, फिर वैवस्वत मनु जिन्हे श्राद्धदेव मनु भी कहते है जो की(कि) सूर्य देव है और वर्तमान में यही मनु है, उनके बाद सावर्णि मनु आएँगे, फिर जो मनु होंगे उनके नाम क्रमशः, इस प्रकार है; दक्ष सावर्णि मनु, ब्रह्म सावर्णि मनु, धर्म सावर्णि मनु, रुद्र सावर्णि मनु, देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु, इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु । इन सभी मनु में से, प्रथम का विवरण हमें महाभारत में भी मिलता है एवं श्वेत वराह कल्प में 14 मनुओं का विवरण है । जैन ग्रंथो में भी 14 कुलकरों का वर्णन मिलता है । श्रीमद्भागवत(श्रीमद् भागवत कथा) के अनुसार ब्रह्मा जी का 51 वां वर्ष चल रहा है और 100 दिव्य वर्ष की उनकी आयु बताई गई है।

संसार में तीनों देवताओं को अजर-अमर बताया गया है जबकि वास्तविकता कुछ ओर(और) है, ब्रह्मा जी कुल आयु सात करोड़ बीस लाख चतुर्युग बताई गई है, ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इंद्र का शासन काल बहत्तर चतुर्युग का होता है। इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन 72 गुणा 14 यानी 1008 चतुर्युग का होता है तथा इतनी ही रात्रि। स्कन्दा पुराण के अनुसार शिव जी माता पारवती(पार्वती) को बताते है की छह ब्रह्म बीत चुके है, जिनके नाम है विरिंचि, पद्मभू, स्यंभू, परमेष्ठिन एवं हेमगर्भ या हिरण्यगर्भ और वर्तमान में जो प्रजापति यानी ब्रह्म है उनका नाम शतानन्द और वे सातवें ब्रह्म है, इनके पश्चात जो ब्रह्म होंगे वे चतुर्वक्त्र अर्थात चार मुख वाले होंगे, कुछ शाश्त्रो में शतानन्द और चतुर्वक्त्र ब्रह्म को एक ही माना गया है।

हनुमान जी

कई मान्यताओं के अनुसार जब इन ब्रह्म के जीवन चक्र, अर्थात अवधि समाप्त होगी, तब इनकी जगह हनुमान जी लेंगे और अगले ब्रह्मा बनेगे, हालाँकि इसका उल्लेख रामायण या रामचरितमानस में नहीं मिलता है, परन्तु ऋषि पराशर द्वारा रचित पारासर संहिता में इस बात का उल्लेख मिलता है । कई ऋषि मुनि वेदो पर अपनी डाक्यूमेंट्री लिखते थे और उन्हें संहिता का नाम दिया जाता था। पुराणों में दो पराशर ऋषियों का वर्णन है। पहले ऋषि पराशर वे, जो वशिस्ठ से उत्पन्न हुए एवं ऋषि वेद व्यास के पिता थे, दूसरे ये ऋषि पराशर उनसे भिन्न है । जैसा की हम जानते है, ऋषि वेद व्यास का नाम कृष्णा द्वैपायन व्यास था और वेद का चार भागों में संकलन करने पर इनके नाम वेद व्यास पड़ा, इन्हे वेद व्यास के 4 शिस्य थे, महर्षि व्यास ने उन चारो शिष्य को एक – एक वेद का प्रचार एवं इनकी शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी सौंपी एवं इन्हे स्मृति, स्वर, पथ सिखाये।

हनुमान जी

इन शिष्यों में ऋषि पैल को ऋग्वेद, ऋषि वैशम्पायन को यजुर्वेद, ऋषि जैमिनी को सामवेद, एवं ऋषि सुमन्तु को अथर्ववेद की ज़िम्मेदारी मिली । इन्होने इन वेदों का ज्ञान अपने शिष्यों को दिया, जिसमे ऋषि पैल के शिष्य भास्कर मुनि को इनसे ऋग्वेद की शिक्षा मिली, और इन ऋषि भास्कर के शिष्य हुए ऋषि पराशर जिन्होंने ऋग्वेद पर कई लेख एवं संहिता लिखी, इन्ही में से उनकी एक रचना जिसका नाम पराशर संहिता है, जिसमे 150 पटलों में श्री हनुम्मचरितम का वर्णन मिलता है।

इसमें हनुमान जी के कई अवतारों, नामो, विभीषिण के पुत्र नील और उनकी हनुमान की स्तुति एवं अनेको कथाओं का विवरण है। इसी में एक विवरण मिलता है, की हनुमान जी का जन्म किस समय हुआ, ऋषि लिखते है कि हनुमान जी का वैशाख माह की पूर्णिमा के दसवे दिन, पूर्ववद्र गृह के वैधृति योग और कर्क लग्न में दोपहर में हुआ था, इसी दिन हम आज भी हनुमान जन्मोत्सव मनाते है । इसी में हमें विवरण मिलता है की हनुमान जी श्री राम जी के एक कार्य को पूरा करते है, और प्रसन्न होकर उन्हें अगले ब्रह्म, यानी रचयिता बनने का वरदान मिलता है।दोस्तों इसलिए सभी देव, इनको हर एक शिक्षा, विधी, वेदो, और शास्त्रों के ज्ञान, सिद्धियों, निधियों, और व्याकरण के हर नियम और ज्ञान से अवगत करना(कराना) चाहते थे क्युकी(क्योंकि) उन्हें पता था कि श्री हनुमान का जन्म बहुत बड़े कार्यों को सिद्ध करने के लिए हुआ है।दोस्तों, जिस प्रकार ब्रह्मा बदलते है, उसी प्रकार इन्द्र भी बदलते है और वर्तमान मन्वन्तर में जो इन्द्र है उनका नाम पुरंदर है और अगले जो इन्द्र बनेंगे वो राजा बलि होंगे, जिन्हे वामन अवतार में भगवान विष्णु ने पाताल लोक का स्वामी बनाया और चिरंजीवी होने का वरदान दिया था।