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सम्राट हेमू

सम्राट हेमू राजस्थान के अलवर जिले के रहने वाले थे । उनका जन्म 1501 में हुआ, उनके परिवार में किराने का काम होता था। वो बचपन से ही बहादुर और बुद्धिमान थे, उन्होंने शेरशाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा और बहुत ही जल्द वो बादशाह के विश्वासपात्र भी बन गए, उनके कुशल नेतृत्व और बुद्धिमत्ता कि बदौलत, बादशाह ने उन्हें ख़ुफ़िया विभाग का प्रमुख नियुक्त किया, आगे चलकर उन्होंने सेना के जनरल का स्थान प्राप्त किया और फिर ‘वकील ए आला’ यानि प्रधानमंत्री का दर्जा भी मिल गया था। हेमू ने कई युद्ध अफगानी बाघियों से लड़े और जीते भी। जिनमे से एक, ताज खान कर्रानी, हेमू से भागते भागते बंगाल जा पहुंचा, और हेमू उससे युद्ध करने बंगाल तक चले गए। इस मौके का फायदा उठा कर हुमायूँ ने दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा कर लिया कुछ ही दिनों में हुमायूँ की मृत्यु हो गयी और हेमू को ये मुग़लों पर चढाई करने का सही अवसर लगा और वे मुग़लों को खदेड़ते हुए – बयाना, इटावा, संभल, काल्पी और नारनौल पर जीत हासिल की और आगरा की ओर बड़े।

सम्राट हेमू

आगरा के मुग़ल गवर्नर को जब ये खबर मिली कि हेमू आगरा की तरफ बढ़ रहे है, वह शहर खाली कर, बिना लड़े भाग खड़ा हुआ और हेमू आगरा पर अपना राज्य स्त्थापित किया, पर हेमू यहां कहाँ रुकने वाले थे वे दिल्ली की तरफ बढ़ने लगे। दिल्ली के गवर्नर, तारदी बेग खान ने अपने बादशाह, अकबर – जो उस समय जालंधर में थे, उन्हें सन्देश भेजा कि हेमू ने आगरा जीत लिया है और दिल्ली कि तरफ बढ़ रहा है। अकबर उस समय 14 साल के थे, उनके संरक्षक के तौर पर बैरम खान मुग़ल साम्राज्य को संभाले हुए था। बैरम खान ने अपने सेनापति पीर मोहम्मद खान को एक बड़ी सेना के साथ दिल्ली भेजा उन दोनों की सेना ने हेमू से तुग़लकाबाद में युद्ध किया जहां मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई और हेमू युद्ध को जीतकर दिल्ली की गद्दी पर बैठे।

 सम्राट हेमू

हेमचन्द्र का राज्याभिषेक भारतीय इतिहास की एक अद्वितीय घटना थी। कई सौ साल बाद दिल्ली की गद्दी पर एक हिन्दू शाशक बैठा था। हेमचन्द्र ने मुग़लों पर विजय के रूप में विजेता की भांति “विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की ।जहां दिल्ली में यह विजय दिवस था, वहां बैरमखां के खेमे में यह शोक दिवस था। सभी भगोड़े मुगल गवर्नर मुंह लटकाए खड़े थे। वे बार-बार काबुल लौटने की बात कर रहे थे, अकबर के दिल में भी दिल्ली से अधिक महत्व काबुल का था, लेकिन बैरम ख़ाँ इससे सहमत नहीं था उसने तर्दी बेग खान के युद्ध में हार कर भागने के कारण उसका सर धड़ से अलग कर दिया दिल्ली पर हमले की योजना बनाने लगा। उधर जब हेमू को पता चला कि मुग़ल जवाबी हमला करने की योजना बना रहे हैं तो उन्होंने पहले ही अपनी तोपें और हथियार पानीपत की तरफ़ भेज दीं।

बैरम ख़ाँ ने भी अली क़ुली शैबानी के नेतृत्व में १० हज़ार लोगों की सेना पानीपत की तरफ़ रवाना कर दी और उसने हेमू के हथियारों का बहुत बड़ा जत्था कब्ज़ा लिया। हेमू अपनी सेना लेकर पानीपत के लिए रवाना हुए, उनकी सेना में लगभग ३० हज़ार घुड़सवार और करीब हज़ार हाथी थे, उनकी तोपों की संख्या बहुत की कम रह गयी थी। लेकिन वे रुके नहीं, उन्हें पता था कि बैरम खान के पास ज़्यादा मात्रा में हथियार और तोपें होगी पर उन्हें अपनीसामर्थ्य और क्षमता पर विश्वास था, वे हाथियों की सूढ़ों में तलवारें और बरछे बंधवाये और उनकी पीठ पर युद्ध कौशल में पारंगत तीरंदाज़ सवार करा कर आगे बड़े।

सम्राट हेमू
सम्राट हेमू

अकबर को इस लड़ाई से थोड़ी दूर एक सुरक्षित जगह पर रखा गया, बैरम ख़ाँ ने भी इस लड़ाई से अपने को अलग रखते हुए लड़ाई की ज़िम्मेदारी अपने ख़ास लोगों पर छोड़ दी थी। सामने एक विशाल मुग़ल सेना, और कई गुना अधिक मात्रा में तोपें देख हेमू की सेना में हाहाकार सा था, उनको उत्साहित करने और विश्वास बढ़ाने के लिए हेमू, बिना किसी कवच के युद्धभूमि में आये और अपने साथियों का जोश बढ़ा रहे थे। वो अपने हाथी – जिसका नाम हवाई था, उस पर चढ़े हुए थे। हेमू ने अपनी बुद्धिमानी और कुशल युद्ध नीति से इतने सटीक और सधे हुए हमले किये कि मुग़ल सेना के बाएं और दाहिने हिस्से में अफ़रा-तफ़री मच गयी।

मुग़ल सेना इधर उधर भाग रही थी और हेमू बीच युद्धभूमि लड़ते हुए अपनी सेना को लगभग जीत दिलाने ही वाले थे कि अचानक एक तीर निशाने पर लगा, और वो निशाना था, सम्राट हेमू की आँख ! जी हाँ दोस्तों, उनकी आँख में अचानक से आकर एक तीर लग जाता है। पर हेमू अपनी आँख से तीर को निकालते है और लड़ना जारी रखते है, वो अपनी सेना को हताश और मायूस नहीं देखना चाहते थे। पर अधिक खून बहने के कारण वो बेहोश होकर अपने ही हाथी के होदे में गिर पड़े। उनकी सेना में हाहाकार मच गया। जब बैरम ख़ाँ युद्धस्थल पर पहुंचा तो उसने सैनिको को जीत की ख़ुशी मनाते देखा, और उसने हेमू को जंजीरो से बांधकर अकबर के सामने पेश किया और कहा कि वो अपने दुश्मन को अपने हाथों से मारें पर अकबर झिझके और ये देख बैरम ख़ाँ ने अपनी तलवार से हेमू का सिर धड़ से अलग कर दिया।

इस तरह हिंदुस्तान के आखिरी हिन्दू सम्राट का अंत हो गया। हेमू ने हमेशा हिंदू और मुसलमानों को अपनी दो आँखों की तरह समझा, पानीपत में वो हिंदुस्तान की प्रभुसत्ता के लिए मुग़लों से लड़े. उनकी सेना के दाहिने हिस्से की कमान सँभाली थी शादी ख़ाँ काकर ने जबकि बाएं हिस्से का नेतृत्व कर रहे थे राम्या। हेमू का व्यक्तित्व अनोखा था, उन्हें मध्ययुगीन भारत में विरोधी मुस्लिम शासकों के बीच थोड़े समय के लिए ही सही, लेकिन एक ‘हिंदू राज’ स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में कुल 22 लड़ाइयाँ जीती और एक में भी उन्हें हार नहीं देखनी पड़ी । इसकी वजह से ही उन्हें कुछ इतिहासकारों ने मध्य युग के समुद्र गुप्त का ख़िताब दिया। वहीँ कुछ इतिहासकार उन्हें मध्ययुग का नेपोलियन भी कहते है ।

हेमू एक अच्छे योद्धा के साथ-साथ कुशल प्रशासक भी थे। उनके युद्ध कौशल का लोहा उनके साथियों और अनुयायिओं के साथ-साथ उनके दुश्मन भी मानते थे। विन्सेंट ए स्मिथ – अकबर की जीवनी में लिखते हैं, “अकबर विदेशी मूल के थे. उनकी रगों में बह रहे ख़ून की एक बूँद भी भारतीय नहीं थी। अपने पिता की तरफ़ से वो तैमूरलंग की सातवीं पीढ़ी से आते थे जबकि उनकी माँ फ़ारसी मूल की थीं।

इसके विपरीत हेमू भारत की मिट्टी के थे और भारत की गद्दी और प्रभुसत्ता पर उनका दावा ज़्यादा बनता था। क्षत्रिय या राजपूत न होने के बावजूद हेमू ने अपने देश की आज़ादी के लिए युद्ध के मैदान पर अपनी आख़िरी साँस ली। किसी मानव अस्तित्व का इससे महान अंत क्या हो सकता है?”एक किराने की दुकान से दिल्ली की गद्दी तक पहुंचना कम से कम उस ज़माने में बहुत बड़ी बात थी। सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य भारत के गगन में एक पुच्छल तारे की भांति थे जो चमके, दमके, धधके तथा बिलीन हो गए। आज आवश्यकता है कि उस महापुरुष का जीवन भारतीय इतिहास की पाठ्य पुस्तकों का अंग बने।