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रवीन्द्रनाथ टैगोर

7 मई 1861 को कोलकाता के एक ब्राह्मण परिवार में, भारत में एक महान रचनाकार ने प्रसिद्धसमाजसेवी देवेन्द्रनाथ टैगोर के घर जन्म लिया और इनका नाम रखा गया रवीन्द्रनाथ टैगोर | एक बुद्धिजीवी परिवार में परवरिश के कारण, बचपन से ही उनकी रूचि, कविताओं और उपन्यासों के प्रति बढ़ने लगी थी जिसका प्रमाण हमें उनके द्वारा लिखी, उनकी पहली कविता में मिलता | ये कविता उन्होंने तब लिखी जब वे महज 8 साल के थे | उनके पिता चाहते थे कि वे कानून की पढाईकरें और बैरिस्टर बने, इसलिएसाल 1878 में उन्हें लन्दन यूनिवर्सिटी में पढने भेजा गया लेकिन उनकी रूचि तो साहित्य में थी इसीलिए वे डिग्री पूरी किए बिना ही दो साल बाद भारत लौट आये |

रवीन्द्रनाथ टैगोर

भारत लौटकर उन्होंने संगीत, साहित्य, एवं उपन्यासों में अपनी रूचि दिखाई – और अलग अलग भाषाओँ, संस्कृति एवं साहित्यों को समझने के लिए अपने परिवार के साथ नयी नयी जगह घुमने लगे|इसी दौरान उनके बड़े भाई ने उन्हें जिमनास्टिक, जूडो और कुश्ती का अभ्यास करना सिखाया | कुछ सालों में ही वे कई भाषाओँ में विद्वान हो गये और लेख एवं कवितायें लिखने लगे | मगर जीवन के लगभग 51 वर्षों तक उनकी सारी उप‍लब्धियां बस कलकत्ता और आसपास के क्षेत्रों तक ही सीमित रही | साल 1912 में जब वे अपने बेटे के साथ समुद्री मार्ग से लन्दन जा रहे थे, तब भारत से लन्दन जाते समय, सिर्फ अपना समय काटने के लिए वे अपनी ही एक पुस्तक “गीतांजलि” जो कि कई कविताओं का एक संग्रह थी, उसका अंग्रेजी में अनुवाद करने लगे औरउन्होंने सारा अंग्रेजी अनुवाद एक नोटबुक में लिख लिया जिसके बाद उन्होंने वो नोटबुक अपने सूटकेस में रख ली, पर नियति ने उनके लिएकुछ और ही सोच रखा था |

रवीन्द्रनाथ टैगोर

लंदन में इनके एक मित्र थे, रोथेनस्टीन जो पेशे से एक महान चित्रकार थे, उन्हें जब यह पता चला कि गीतांजलि का स्‍वयं टैगोर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है तो उन्‍होंने उसे पढ़ने की इच्‍छा जाहिर की, इन्होने हिचकिचाते हुए अपनी नोटबुक रोथेंस्टिन को पढने के लिए दे दी |  रोथेंस्टिन उसे पढ़कर इतने मंत्र मुग्‍ध हो गए कि अपने एक दोस्त डब्‍ल्‍यू.बी. यीट्स, जो कि खुद उस समय के एक महान लेखक थे, उनको गीतांजलि के बारे में बताया | यीट्‍स उन कविताओं से इतने इम्प्रेस हो गये कि उन्होंने गीतांजलि के अंग्रेजी संकरण की प्रस्‍तावना लिखी और उसी साल सितंबर में अंग्रेजी संस्करण को प्रकाशित करवाया | जिसके बाद पूरी दुनिए के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की खूब सराहना हुई और पहली बार भारतीय कविताओं की झलक पश्चिमी जगत ने इतने बड़े पैमाने पर देखी। इसके प्रकाशन के एक साल बाद सन् 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया और वे इतिहास के पहले साहित्यकार बने जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के बीच एक पुल बनने का काम किया | नोबेल पुरस्कार पाने वाले वे न सिर्फ पहले भारतीय, बल्कि पहले एशियाई औरपहले गैर यूरोपियन व्यक्ति बने | नोबेल प्राइज में मिली धनराशी से उन्होंने अपना या अपने परिवार का भला करना नही चाहा, बल्कि समाज को बेहतर और देश में शिक्षा का स्तर ऊंचा करने के प्रयास में बंगाल के शान्तिनिकेतन में विश्व भारती स्कूल की स्थापना की |

रवीन्द्रनाथ टैगोर
रवीन्द्रनाथ टैगोर

इस विद्यालय ने देश को कई बेहतरीन लोग देने में अपना योगदान दिया है |जैसे कि नोबेल पुरुष्कार जीतने वाले अमर्त्य सेन, ऑस्कर अवार्ड जीतने वाले प्रसिद्ध डायरेक्टर सत्यजित रे, भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री, इंदिरा गाँधी, संविधान के कई पन्नो को अपनी कलाकारी से सजाने वाले दीनानाथ भार्गव, भारत के पांचवे मुख्य न्यायाधीश सुधी रंजन दास, जयपुर की महारानी गायत्री देवी, और भी कई महान व्यक्तियों को गुरुदेव के शान्तिनिकेतन में ही शिक्षा दी गयी है | इनके द्वारा किए गए ऐसे कई सामाजिक कार्यों के कारण महात्मा गाँधी ने इन्हें “गुरुदेव” का खिताब दिया | साल 1915 में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम ने इन्हें
ब्रिटेन का उस समय का सर्वोच्च सम्मान यानि नाइटहुड का खिताब दिया, यह खिताब पाने वाले वे भारत के पहले व्यक्ति थे और इसके बाद उन्हें “सर” कहकर संबोधित किया जाने लगा | हालाँकि साल 1919 में हुए जलियांवाला बाघ नरसंहार के बाद उन्होंने अपना ये ख़िताब वापस लौटा दिया |