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श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024: भगवान श्री कृष्ण के अवतार की महिमा और उल्लासपूर्ण उत्सव

श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे कृष्णाष्टमी भी कहा जाता है, हर साल भारत और दुनिया भर में भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष, यह पवित्र पर्व 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। भगवान श्री कृष्ण, जिन्हें विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है, ने अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया। इस अवसर पर, श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन और जन्माष्टमी के उल्लासपूर्ण उत्सव की चर्चा करेंगे।

भगवान श्री कृष्ण का अवतार और महिमा

भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण मे यानि आजसे लगभग 3228 BCE में हुआ था, जब पृथ्वी पर अत्याचार, अधर्म और अराजकता का साम्राज्य था। श्रीमद्भागवद् गीता में भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं, “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।” अर्थात जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है और अधर्म का प्रभाव बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं अवतरित होकर धर्म की पुनः स्थापना करता हूँ।

श्री कृष्ण ने अपने जीवन में बाल्यकाल से लेकर महाभारत तक अनेक लीलाएं कीं, जिनमें से प्रत्येक लीला में उन्होंने भक्तों को यह सिखाया कि जीवन में सदैव धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। वे माखन चुराने वाले नटखट बालगोपाल भी थे और महाभारत जैसे भयानक युद्ध के नायकर्ता भी। उनके द्वारा गीता में दिया गया उपदेश आज भी जीवन की जटिलताओं को सुलझाने के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होता है।

भगवान श्री कृष्ण के जीवन की सबसे बड़ी महिमा यह है कि उन्होंने संसार को प्रेम, भक्ति और करुणा का संदेश दिया। राधा-कृष्ण का प्रेम, भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है, जो यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम किसी भी सीमा और स्वार्थ से परे होता है। कृष्ण की बांसुरी की मधुर ध्वनि आज भी भक्तों के हृदय में गूंजती है और उन्हें आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराती है।

जन्माष्टमी का महत्त्व और परंपराएं

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से उन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जो श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानते हैं। इस दिन को भगवान कृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है, जिसे उन्होंने मथुरा की जेल में आधी रात को जन्म लिया था। जन्माष्टमी का पर्व भक्तों के लिए भगवान की लीलाओं का स्मरण करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक पवित्र अवसर है।

जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और श्री कृष्ण की लीलाओं का मंचन भी किया जाता है। मथुरा, वृंदावन और द्वारका जैसे स्थानों पर जन्माष्टमी की विशेष धूमधाम होती है। यहां के मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है, और रात्रि में श्री कृष्ण के जन्म का भव्य आयोजन किया जाता है। मथुरा में भगवान के जन्म के समय नंदोत्सव मनाया जाता है, जिसमें भगवान की बाल लीला का प्रदर्शन किया जाता है और भक्तजन उनके जन्म की खुशी में झूम उठते हैं।

देशभर में कई स्थानों पर दही हांडी का आयोजन भी होता है, जो श्री कृष्ण के माखन चुराने की लीला का प्रतीक है। इसमें युवक और युवतियां एक साथ मिलकर मटकी फोड़ने की कोशिश करते हैं। इस आयोजन में लोगों की भागीदारी उत्सव की खुशी को और बढ़ा देती है।

कृष्ण जन्माष्टमी  विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करती है। कलयुग में भी श्री कृष्ण के उपदेश और उनकी शिक्षाएं उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी द्वापर युग में थीं। उनकी गीता का संदेश आज भी जीवन में संतुलन और धैर्य बनाए रखने में सहायक है।

वर्तमान समय में जब समाज में तनाव, संघर्ष और अशांति बढ़ रही है, ऐसे में भगवान श्री कृष्ण की शिक्षाओं का अनुसरण करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सत्कर्म और धर्म के मार्ग पर चलने से किसी भी संकट का सामना किया जा सकता है।

पूजा करने में इन मंत्रो का करे इस्तेमाल

भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते समय सबसे पहले उनके विग्रह  या फोटो के समक्ष हाथ में जल लेकर सभी वस्तुओं औऱ स्वयं को आसन सहित शुद्ध करें।

  • शुद्धि मंत्र – ओम अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोअपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। जल को स्वयं पर और पूजन सामग्री पर छींटे लगाकर पवित्र करें। इसके बाद पूजा का आरंभ विधि विधान सहित करे।
  • श्रीकृष्ण ध्यान मंत्र – वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।। हे वसुदेव के पुत्र कंस और चाणूर का अंत करने वाले, देवकी को आनंदित करने वाले और जगत में पूजनीय श्रीकृष्ण आपको नमस्कार है। – इस मंत्र से भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करके फूल भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में निवेदित करें।
  • जन्माष्टमी 2024 पूजन संकल्प मंत्र  – यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं महं करिष्ये। – हाथ में पान का पत्ता कम से कम एक रुपये का सिक्का, जल, अक्षत, फूल, फल लेकर भी यह संकल्प मंत्र बोलें, फिर हाथ में रखी हुई सामग्री की भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित करें।
  • भगवान श्रीकृष्ण आवाहन मंत्र – बिना आह्वान किए भगवान की पूजा पूरी नहीं हो पाती है। आह्वान का मतलब होता है भगवान को बुलाना। और जब आप भगवान को बुलाएंगे ही नहीं तो पूजा कैसे स्वीकार करेंगे भगवान इसलिए आह्वान किया जाता है।
  • आवाहन करने की विधि और मंत्र, हाथ में तिल जौ लेकर मूर्ति में भगवान का आवाहन करना चाहिए, आवाहन मंत्र- अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्। स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्।। – तिल जौ को भगवान की प्रतिमा पर छोड़ें।
  • भगवान श्रीकृष्ण को आसन देने का मंत्र – अर्घा में जल लेकर बोलें- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।। जल छोड़ें।
  • भगवान श्री कृष्ण को को अर्घ्य देने का मंत्र – अर्घा में जल लेकर बोलें – अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणां करु मे देव! गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।। जल छोड़ें।
  • भगवान श्रीकृष्ण का आचमन करवाने का मंत्र  – अर्घा में जल और गंध मिलाकर बोलें – सर्वतीर्थसमायुक्तं सुगन्धं निर्मलं जलम्। आचम्यतां मया दत्तं गृहत्वा परमेश्वर।। जल छोड़ें।
  • भगवान श्रीकृष्ण को स्नान कराने का मंत्र  – अर्घा में जल लेकर बोलें – गंगा, सरस्वती, रेवा, पयोष्णी, नर्मदाजलैः। स्नापितोअसि मया देव तथा शांति कुरुष्व मे । – जल छोड़ें।
  • भगवान श्रीकृष्ण का पंचामृत स्नान – अर्घा में गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद मिलाकर भगवान श्रीकृष्ण को यह मंत्र बोलते हुए पंचामृत स्नान कराएं- पंचामृतं मयाआनीतं पयोदधि घृतं मधु। शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।। – भगवान को स्नान कराएं। अर्घा में जल लेकर भगवान को फिर से एक बार फिर से भगवान श्रीकृष्ण को शुद्धि स्नान कराएं।
  • भगवान श्रीकृष्ण को वस्त्र अर्पित करने का मंत्र – हाथ में पीले वस्त्र लेकर यह मंत्र बोलें – शीतवातोष्णसन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहालअंगकरणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे। – भगवान को पीले वस्त्र अर्पित करें।
  • यज्ञोपवीत अर्पित करने का मंत्र – यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्मयग्यं प्रतिमुन्ज शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। – इस मंत्र को बोलकर भगवान श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत अर्पित करें।