“जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा,
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊंगा,
फिर आऊंगा,फिर आकर के ऐ भारत मां तुझको आज़ाद कराऊंगा”।
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,
मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूं; हां खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूंगा,
और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूंगा।”
ये पंक्तियाँ लिखी है भारत के एक महान क्रन्तिकारी अशफाकुल्लाह खान ने जिसने महज 27 साल की उम्र में ही देश की स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दे दिया, इन्होने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन जैसे संगठन की स्थापना की और उन्ही के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी के लिए कई सालों तक संघर्ष किया, इसी दौरान साल 1925 में चंद्रशेखर आजाद और बिस्मिल के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजो की एक ट्रेन को काकोरी में लूटकर पुरे हिन्दुस्तान में तहलका मचा दिया था |
दोस्तों, इनका जन्म 22 अक्टूबर, 1900 में, उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ | साल 1918 में जब वे 7 वी क्लास में थे, तब पुलिस की एक रेड में उनके स्कूल से राजाराम भारतीय को गिरफ्तार किया गया | राजाराम भारतीय ने रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर अंग्रेजो के मैनपुरी में रखे हुए खजाने को लूटा था | अशफाकुल्लाह को जब ये पता चला तो उन्हें भी अंग्रेजों के खिलाफ इस क्रांति में शामिल होने का जूनून चढ़ गया | उनके बड़े भाई भी अक्सर राम प्रसाद बिस्मिल की वीरता, देशभक्ति और अंग्रेजो को चकमा देने की कहानियाँ सुनाया करते थे। अशफाकउल्ला खान – राम प्रसाद बिस्मिल के देशभक्त व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे इसलिए उन्होंने कई बार उन्हें ढूँढने और उनसे मिलने का प्रयास भी किया|
साल 1922 में जब महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन चला रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक छोटे से शहर चौरी चौरा में बड़े पैमाने पर हुए नरसंहार के बाद गाँधी जी ने अपना असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया, इसमें कई युवा क्रन्तिकारी जुड़े हुए थे और अचानक इसके रुकने से सभी युवा स्वतंत्रता सैनानिओं को निराशा हुई और अशफाकुल्लाह भी उनमे से एक थे | इसके बाद उन्होंने बिस्मिल के नेतृत्व में चल रहे क्रन्तिकारी आन्दोलन की तरफ रुख किया | वे एक जनसभा के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल से मिले | दोस्तों, जहां एक तरफ राम प्रसाद बिस्मिल हिंदू पंडित समुदाय के होने के साथ साथ आर्य समाज आंदोलन के अनुयायी भी थे वहीँ अशफाकउल्ला खान एक मुस्लिम समुदाय से आते थे | अलग अलग समुदाय के होने के बावजूद उनकी समान विचारधारा, आदर्शों और देशभक्ति की भावना को देखते हुए राम प्रसाद बिस्मिल को अपने साथ शामिल कर लिया |
साल 1924 में राम प्रसाद बिस्मिल के मार्गदर्शन और नेतृत्व में अशफाकउल्ला खान और उनके साथियों ने अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रांति और उनसे लड़ने के लिए एक अलग दल “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” का गठन किया | इसके बाद इस संगठन की अंग्रेजो के साथ अक्सर छोटी छोटी मुठभेड़ होती रहती थी | पर आन्दोलन को बड़े स्तर पर पहुँचाने के लिए हथियार और पैसों की ज़रुरत थी जिसके लिए इन्होने बिस्मिल और अन्य साथियों के साथ काकोरी में अंग्रेजों की एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई। 8 अगस्त 1925 को हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों द्वारा ट्रेन को लूटने के लिए एक बैठक बुलाई | जहां योजना बनाई गयी, जिसके तहत ट्रेन को लूटने की अशफाकउल्ला खान , राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिरी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिंद्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुरारी लाल गुप्ता, मुकुंदी लाल और मनमथनाथ गुप्ता के जिम्मे आई और अगले ही दिन सब उस ट्रेन में पहुँच गये |
जब ट्रेन शाहजहांपुर और लखनऊ के बीच में थी, तभी उनमे से एक ने ट्रेन की चेन खींच दी । इससे ट्रेन तो रुक गई पर वहां मौजूद गार्ड बाहर आ गया। हालाँकि इस बात की पहले से ही योजना तैयार थी और उसी योजना के तहत अशफाकउल्ला खान , सचिंद्र बख्शी और राजेंद्र लाहिरी सेकंड क्लास के डिब्बे से बाहर आ गए और गार्ड के साथ साथ ड्राईवर को भी पकड़ लिया | इस दौरान उन्होंने ट्रेन में मौजूद सभी यात्रियों को सतर्क कर दिया और कहा कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले क्रन्तिकारी है, उनकी लड़ाई अंग्रेजी हुकूमत से, वे वहां मौजूद यात्रिओं को कोई नुकसान नही पहुंचाएंगे, बस एक बात का ध्यान रहे कि कोई भी यात्री ट्रेन से नहीं भागे | इसके बाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला और चंद्रशेखर आजाद समेत सभी लोग गार्ड के कमरे में मौजूद एक बक्से के भीतर से अंग्रेजों का धन लूटकर लखनऊ की ओर भाग गये |दोस्तों इस घटना के बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट ने इस लूट आरोपियों को पकड़ने के लिए हाई लेवल इमरजेंसी गोषित कर दी | जिसके करीब दो महीने बाद ‘राम प्रसाद बिस्मिल’ और उनके कई साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया। पर दो लोग अभी भी फरार थे, अशफाकुल्ला और आज़ाद | इन्हें ढूढ़ने और पकड़ने के लिए कई प्रयास किए गये पर हर बार ये पुलिस को चकमा देने में कामयाब हो जाते | इसी बीच भारतीय स्वतंत्रता के एक प्रसिद्ध सेनानी श्री गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने के लिए अशफाकउल्ला खान एक लम्बा सफ़र तय करते और पुलिस से बचते हुए नेपाल के रास्ते से कानपुर पहुंचे | जिसके बाद वे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे अपने दोस्तों से मिलने काशी पहुंचे | काशी में पहुंचकर उन्होंने पुलिस से बचने और आन्दोलन को जीवित रखने के लिए इंजिनियर की नौकरी ले ली और करीब 10 महीने तक वहिन्न छुपके काम करते रहे |
जब उनके पास कुछ रूपये इक्कठे हुए तो उन्होंने इस संग्राम में लाला हरदयाल की सहायता प्राप्त करने लिए विदेश जाने की योजना बनाई | लाला हरदयाल, अमेरिका और कनाडा में अख़बारों, पत्रिकाओं और भाषणों के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनी मुहीम चला रहे थे जिसके लिए उन्होंने साल 1913 में ग़दर पार्टी की स्थापना भी की थी | अशफाक़उल्ला उनसे मिलने के लिए दिल्ली से रवाना होने वाले थे | दिल्ली में उन्हें अपना एक पठान दोस्त मिला, पुलिस से छुपते हुए इतने महीनो बाद वे पहली बार किसी दोस्त से मिले | पर पठान ने उन्हें धोखा दे दिया और उनकी खबर पुलिस को दे दी | 7 दिसम्बर 1926 को पुलिस ने अशफाकुल्ला को पठान के घर से पकड़ लिया गया | जेल में लिखे गये उनके कई पत्रों में से एक में उन्होंने लिखा था कि हथियारों के इस्तेमाल के पीछे उनका मकसद हिंसा फ़ैलाने या लोगों का डरना नही बल्कि केवल और केवल भारत को आज़ाद कराना था |
19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान , राजेंद्र लाहिरी, और ठाकुर रोशन सिंह को ब्रिटिश सरकार द्वारा काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम देने के लिए फांसी दे दी गई |
दोस्तों, आपको आज की ये विडियो कैसी लगी हमें कमेंट्स में ज़रूर बताएं, विडियो अच्छी लगी हो तो लाईक करें और ऐसी ही कई रोचक वीडियोस देखने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करे !