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दोस्तों, आज की पीढ़ी भले ही दक्षिण भारत के दिग्गज नेता “के. कामराज” जी को भूल चुकी हो लेकिन वर्तमान में देशभर में चल रही मिड-डे-मील और निःशुल्क शिक्षा की नींव रखने का श्रेय उन्हें ही जाता है | इनको भारतीय राजनीति में कई कारणों से याद किया जाता है | वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने पार्टी को मज़बूत करने के लिए अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था | गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी श्री कामराज जी को आजाद भारत का पहला ‘किंगमेकर’ भी कहा जाता था | लेकिन साल 1967 में ऐसा क्या हुआ कि जिन्हें कभी प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाता था, वे अपने गृह राज्य तमिलनाडु में अपनी ही विधानसभा सीट नहीं बचा पाए | आज की इस विडियो में हम इस बात को जानेगे कि कैसे महज एक ही दशक में कामराज जी की छवि एक किंगमेकर से एक हारे हुए योद्धा की हो गयी |

कामराज

कामराज जी का जन्म 15 जुलाई 1903 को मद्रास, के विरुधनगर में हुआ | 15 साल की उम्र में वे जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए और 18 साल की उम्र में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हुए | साल 1930 में इन्होने नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया और पहली बार जेल गए | भारत की आज़ादी तक उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के लगभग १० साल जेल में बिताये | जेल में रहते हुए ही उनको म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का चेयरमैन चुना गया पर जेल से बाहर आने पर उन्होंने ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि, ‘आपको ऐसा कोई भी पद स्वीकार नहीं करना चाहिए, जिसके साथ आप पूरा न्याय नहीं कर सकते हैं |’


जनता के नेता


आज़ादी के बाद, साल 1952 में सी. राजगोपालाचारी यानी “राजाजी” के सामने वे एक नये कांग्रेसी नेता के रूप में उभरकर आये | कामराज जी का उदय इतनी तेजी से हो रहा था कि केवल दो साल में ही ‘राजा जी’ को उनके लिए अपना पद छोड़ना पड़ा और साल 1954 में उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बना दिया गया, जिसके बाद वे 1963 तक मद्रास के मुख्यमंत्री बने रहे। इस दौरान उन्होंने हर गांव में एक प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में एक हाईस्कूल खोलने की मुहिम चलाई, उन्होंने 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना और साथ ही साथ स्वतंत्र भारत में पहली बार मिड डे मील योजना की शुरुआत की उनका मानना था कि इस कारण राज्य के लाखों गरीब बच्चे कम से कम एक वक्त भरपेट भोजन कर सकेंगे |

कामराज


दोस्तों, मद्रास में तय समय के भीतर सिचाईं परियोजनाओं को पूरा करने और हर गांव में आजादी के महज 15 साल बाद बिजली पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है, इसपर प्रधानमंत्री नेहरू जी ने उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि मद्रास भारत में सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है |
तीसरा अध्याय – राजनीतिक धुरंधर और किंगमेकर
दोस्तों, आपको बता दें कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और ग़ैर-हिंदी भाषी नेताओं के गुट को तब सिंडीकेट या संगठन कहा जाता था, जिसकी अगुवाई कामराज जी किया करते थे और भारत – चीन युद्ध के बाद, इन्होने नेहरु जी को बताया कि कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं में सत्ता का लोभ घर कर रहा है जिससे कांग्रेस की संगठन में पकड़ कमज़ोर होने लगी है | इससे उभरने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि पार्टी के सभी बड़े नेता अपने पदों से इस्तीफ़ा दें और ग्राउंड लेवल पर काम करें | इस योजना के चलते कामराज ने सबसे पहले खुद अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया जिसके बाद 6 कैबिनेट मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा | यही योजना आगे चलकर ‘कामराज प्लान’ के नाम से फेमस हुई |
साल 1964 में नेहरु जी के निधन के बाद अगले प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री थे | जहां शास्त्री जी को नेहरू का शिष्य माना जाता था वहीँ मोरारजी देसी का राजनीती में ओहदा काफी बड़ा था इसके बावजूद कामराज जी ने सर्वसम्मति की बात कर शास्त्री जी का समर्थन किया और उन्हें प्रधानमंत्री बनाया |
पर शास्त्री जी की जनवरी 1966 में मौत हो गई | इस बार मोरारजी देसाई सर्वसम्मति की बात नहीं माने और प्रधानमंत्री बनने के लिए मतदान कराने की बात पर अड़ गए | हालांकि सिंडीकेट ने इस बार कामराज जी के नाम का भी प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया कहा कि “जिसे ठीक से हिंदी और अंग्रेजी न आती हो, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए” | और उन्होंने इंदिरा गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसके बाद इंदिरा गाँधी 355 सांसदों का समर्थन पाकर प्रधानमंत्री बनी | अपनी कुशल राजनीती के चलते देश को दो प्रधानमंत्री देने पर इन्हें किंगमेकर कहा जाने लगा |


कमज़ोर पड़े कामराज


दोस्तों, 60 के दशक में दो बड़े युद्ध, खाद्य संकट और हिंदी भाषा को देश की अधिकारिक भाषा बनाने को लेकर राजनैतिक उथल पुथल मची हुई थी जिससे 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कई राज्यों में बुरी तरह हारी, खुद कामराज जी तमिलनाडु में अपनी गृह विधानसभा में हार गए | अब दांव इंदिरा ने चला, उन्होंने कहा कि हारे हुए नेताओं को पद छोड़ना चाहिए जिसपर कामराज जी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा, इसके बाद इंदिरा ने भी उनको किनारे लगाने शुरू कर दिया जिससे संगठन और सरकार के बीच दूरी बढ़ने लगी जो साल 1969 के राष्ट्रपति चुनावों में खुलकर सामने आई | दरअसल, संगठन के नीलम रेड्डी को राष्ट्रपति बनाने के फैसले से विरुद्ध जाकर इंदिरा गाँधी ने वी.वी. गिरि को चुनाव में खड़ा किया और कांग्रेस्सियों को अपनी ओर कर वी वी गिरी को जिताया इस पर संगठन के वरिष्ठ नेता तिलमिला गए और नवंबर 1969 में पार्टी की मीटिंग बुलाकर इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया |

कामराज


मगर इंदिरा इसके लिए पहले से ही तैयार बैठी थीं | संसदीय दल की मीटिंग में उन्हें 285 में 229 सांसदों का समर्थन मिला और बचे वोट उन्होंने तमिलनाडु में कामराज जी की धुर विरोधी “डीएमके” पार्टी से जुटा लिए | लेफ्ट पार्टियां भी उनके साथ आ गईं | इसके बाद कांग्रेस पार्टी के दो भाग हो गये | कांग्रेस ओ. यानी ऑर्गनाइजेशन जिसे सिंडिकेट या संगठन भी कहते थे और दूसरी “कांग्रेस रूलिंग” जो इंदिरा संभाल रही थीं |


इससे कामराज जी को बहुत धक्का लगा और उन्होंने केंद्र की राजनीति छोड़ तमिलनाडु का रास्ता पकड़ लिया | 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें तो जीत मिली लेकिन संगठन के ज्यादातर नेताओं को हार का सामना करना पड़ा | 2 अक्टूबर 1975 को गांधी जयंती के दिन 72 साल की उम्र में हार्टअटैक से उनकी मौत हो गई | साल 1976 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया या फिर यूँ कहें कि इंदिरा गाँधी उन्हें ये सम्मान देकर उनका एहसान चुकाना चाहती थी | माना जाता है कि वह भारत के पहले ग़ैर-अंग्रेजी भाषी मुख्यमंत्री थे लेकिन तमिलनाडु में उनके नौ साल के कार्यकाल को सर्वोत्तम प्रशासन के लिए जाना जाता है |