वित्त मंत्रालय संभालते ही सामने आई ये चुनौतियाँ ! भारत की अर्थव्यवस्था पर कैसा पड़ेगा असर?
देश में हाल ही में आम चुनाव खत्म हुए हैं। अभी वित्त मंत्री को आर्थिक विकास की दर और अर्थव्यवस्था के आकार को देखने की बजाय कुछ चिंता के विषयों पर ध्यान देना चाहिए। चुनाव नतीजों से पता चला है कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का मतलब ये नहीं है कि गरीबी कम हुई है या रोजगार ज्यादा पैदा हुए हैं।
पहले ये सोचा जाता था कि अगर अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है तो गरीबी और अमीरी के बीच की खाई ज्यादा मायने नहीं रखती है। लेकिन अब ये सोच बदल रही है। साथ ही, अर्थव्यवस्था की रफ्तार को लेकर भी कुछ चेतावनी के संकेत मिल रहे हैं। इनमें से सबसे बड़ी चिंता है लोगों की बचत में कमी है।
बचत दर घटी है
साल 1991 के बाद से भारत में बचत की दर घटी है। 1990-91 में जीडीपी का 23.3% बचत होती थी जो 2007-08 में बढ़कर 37.8% हो गई। लेकिन उसके बाद से बचत लगातार कम होती गई और 2020-21 में घटकर 28.2% रह गई। अध्ययनों से पता चला है कि बचत बढ़ने की एक बड़ी वजह अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती खाई थी। जैसे-जैसे अमीरों की आमदनी बढ़ी, वैसे-वैसे गरीबों की जेब खाली होती गई। गरीब कमाई का ज्यादातर हिस्सा खाने-पीने पर खर्च कर देते हैं जबकि अमीर बचत कर सकते हैं।
विदेश चला जाता है पैसा
लेकिन सिर्फ अमीरों की आमदनी बढ़ाकर देश की बचत को बढ़ाना ज्यादा समय तक नहीं चल सकता। गरीबी को दूर करने के लिए सरकार को गरीबों को मदद देनी पड़ती है। भले ही कुछ लोग इस मदद को ‘मुफ्तखोरी’ समझते हों, लेकिन ये राजनीतिक रूप से जरूरी है। इसके अलावा, अगर अमीरों की आमदनी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, तो वो पैसा विदेश में चला जाता है और देश की अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं मिलता। कुछ संकेत हैं कि ऐसा होना शुरू हो चुका है।
इस वजह से बढ़ रही अर्थव्यवस्था
तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के पीछे विदेशी निवेश भी एक कारण है। लेकिन ये निवेश कभी भी कम या ज्यादा हो सकता है। साथ ही, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हमेशा रोजगार पैदा नहीं करती। टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल से कई लोगों की नौकरियां खत्म हो सकती हैं। अगर भारत में बचत की दर बढ़ानी है, तो आर्थिक नीतियों में बदलाव करना होगा। साल 1991 में बजट भाषण के दौरान मनमोहन सिंह ने भारतीय उद्योग को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अर्थव्यवस्था को खोलने की बात की थी। लेकिन ऐसा पूरी तरह से नहीं हो सका, जिसकी वजह से भारत को विदेशी निवेश पर ज्यादा निर्भर होना पड़ा।
अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए इन उपायों की जरूरत :
- विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत ने कई स्टॉक एक्सचेंज को बंद कर के सिर्फ दो बड़े स्टॉक एक्सचेंज दिया।
- इससे छोटे शहरों में जमा होने वाली बचत का बड़े उद्योगों में निवेश कम हो गया। पहले छोटे शहरों के स्टॉक एक्सचेंज स्थानीय कंपनियों को वहां के लोगों से पैसा जुटाने में मदद करते थे।
- ये कंपनियां सफल होने के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जा सकती थीं। छोटे स्टॉक एक्सचेंज बंद होने से गरीब लोगों का पैसा बड़े शेयर बाजार में नहीं लग पाता, जहां न्यूनतम निवेश की रकम उनकी पहुंच से बाहर है।
- बचत की दर बढ़ाने के लिए जरूरी है कि छोटे बचत करने वालों का पैसा स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाए।
- इसके लिए छोटे शहरों के स्टॉक एक्सचेंज को दोबारा खोलने की जरूरत है। साथ ही, ऐसे नए वित्तीय तरीके अपनाने चाहिए जो अर्थव्यवस्था के हर हिस्से को ध्यान में रखें।