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रानी दुर्गावती

शेरशाह सूरी, अकबर, बाज बहादुर और अफाघनियों को धूल चटाने वाली – गढ़ मंडला की रानी
“रानी दुर्गावती”


रानी दुर्गावती, भारत की वो वीरांगना जिसने छोटे से राज्य को जीतने में अकबर के पसीने छुड़वा दिए, शेर शाह सूरी को उसी की लायी हुई तोपों के बारूद से समाप्त किया, बाज़ बहादुर शाह को अनेकों बार आक्रमण और प्रयत्न करने पर भी अपना राज्य जीतने नहीं दिया और आत्मसम्मान के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया । आईये भारत की इस निडर वीरांगना के बारे में विस्तार से जानते है।


दोस्तों, रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल वंश के प्रसिद्ध राजा कीरत राय के यहाँ, 5 अक्टूबर 1524 को दुर्गाष्टमी के दिन हुआ, जिस कारण से उनका नाम दुर्गावती रखा गया। कीरत राय बुंदेलखंड के राजा थे और इनकी राजधानी कालिंजर थी, इन्होने 1531 में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को कालिंजर के युद्ध में हराया था, इन्ही के पूर्वज, राजा विद्याधर ने राजा भोज और महमूद ग़ज़नी को भी हराया। चंदेल वंश द्वारा ही खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कार्य भी कराया गया था तो ये कहना उचित होगा कि – कला, वीरता, कुशल शाशन एवं कुशल युद्ध नीति, ये सब गुण रानी दुर्गावती को विरासत में मिले थे |

रानी दुर्गावती


दुर्गावती का विवाह 1542 में दलपत शाह से हुआ जो गोंड वंश के शाशक संग्राम शाह के बड़े बेटे थे। इन्ही के समय गोंड वंश अधिक उन्नत हुआ और इनके साम्राज्य में करीब ५२ किले थे | 1545 में इन्होने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वीर नारायण रखा गया। दोस्तों, शेर शाह सूरी द्वारा, 1545 में जब कालिंजर पर आक्रमण हुआ, तब कीरत राय ने गोंड राजा दलपत शाह और दुर्गावती से मदद मांगी और रानी दुर्गावती की वीरता और युद्ध नीति के चलते, शेर शाह सूरी को उसी के तोपों के बारूद से एक विस्फोट में मार दिया गया। दोस्तों, दलपत शाह की आकस्मिक मृत्यु के बाद, मंत्रियों के समझाने पर रानी दुर्गावती अपने पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर खुद राज्य की शासक बन गई। इन्होने सुरक्षा की दृष्टि से अपनी राजधानी सिंगौरगढ़ से बदल कर चौरागढ़ कर ली, जो कि सतपुरा की पहाड़ियों में अधिक सुरक्षित थी |

रानी दुर्गावती ने बड़ी कुशलता से राज्य को संभाला, इनके राज्य में २३००० गाँव थे जो सभी खुशहाल थे और टैक्स भी काफी कम था, सभी नागरिको को युद्ध के लिए अभ्यास और प्रशिक्षण कराया जाता था, और उन्होंने कई मंदिरों, भवनों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया | उस समय उनका राज्य बहुत ही खुशहाल और समृद्ध था , यही वजह थी कि पड़ोस के मालवा शाशक बाज बहादुर ने इनपर कई आक्रमण किए लेकिन वो कभी सफल नहीं हो पाया | बंगाल के अफ़ग़ान बादशाहों ने भी गोंड प्रदेश जीतने कि कोशिश की लेकिन रानी दुर्गावती ने हर बार सभी को अपनी कुशल रणनीति से मात दी |१५६२ में जब अकबर ने बाज बहादुर को हराकर मालवा अपने अधीन कर लिया, तब उसके क्षेत्र की सीमा रानी दुर्गावती के क्षेत्र से लगने लगी | अकबर को रानी दुर्गावती की ख्याति का जब पता चला , वह काफी प्रभावित हुआ क्यूंकि जिन बंगाली अफघानों को अकबर के जनरल मुनीम खान और १२ अन्य जनरल मिलकर नहीं हरा पाए, उसे रानी ने हरा दिया था |

रानी दुर्गावती


अकबर ने रानी को मिलने का प्रस्ताव भेजा और कहा कि वो मुग़ल बादशाह की आधीनता स्वीकार कर लें, लेकिन रानी ने किसी कि भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया | अकबर ने अपने सबसे बहतरीन जनरल आसफ खान – जो हाल ही में रीवा जीता था – उसको गोंडवाना जीतने भेजा | साथ ही उसने ६ अन्य कमांडर भी भेजे क्यूंकि वो जानता था कि गोंडवाना जीतना आसन नहीं होगा |आसफ खान एक बहुत बड़ी सेना लेकर गोंडवाना पहुँचता है, और सीधे युद्ध करने के बजाये, आसपास के गाँव में लूट पात मचाने लगता है | और धीरे – धीरे लूटते हुए, राजधानी कि तरफ बढता है, रानी जानती थी की अकबर की सेना बहुत बड़ी है – जिसमे कई सौ हाथी और सैकड़ों तोपें है, उनका मुकाबला रानी की छोटी सी सेना नहीं कर सकती, उन्होंने दमोह के समीप सकरे रास्ते को युद्ध क्षेत्र के रूप में चुना जहां अकबर के आधुनिक हथियार और बड़ी सेना भी रानी की वीरता और युद्ध कौशल के सामने हार गये, पर इस युद्ध में रानी कि सेना को भी बहुत नुकसान हुआ और उनके प्रमुख फौजदार अर्जुन दस वीरगति को प्राप्त हो गये | पर वो मुग़ल सेना को खदेड़ने में कामयाब हुई |


आसफ खान फिर एक बहुत बड़ी सेना लेकर लौटा, और खुले मैदानों से होता हुआ दमोह पहुंचा और इस बार दोनों सेनाओं में फिर घमासान युद्ध शुरू हुआ, रानी अपने हाथी सरमन पर सवार थी, इस बार युद्ध में रानी के पुत्र वीर नारायण भी थे | हालाँकि वीर नारायण युद्ध में बहुत घायल हो गये थे, और रानी ने उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर ले जाने का आदेश दिया और खुद युद्ध करने लगी | घायल होने से पहले, वीर नारायण ने, अपने से तीन गुना बड़ी सेना को काफी पीछे तक खदेड़ दिया था |


बहुत देर तक युद्ध चलने के बाद, कई मुग़ल तीरंदाजो ने रानी के हाथी को घेर लिया और तीर चलाने लगे, रानी अकेले ही धनुष बाण लिए, जवाबी हमला कर रही थी, तभी एक तीर उनके कान के पास आ लगा, रानी ने ज्यों ही उसे निकला, तभी एक और तीर उनकी गर्दन में जा लगा | उनके सलाहकारों ने उन्हें युद्ध भूमि छोड़ कर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने को कहा , पर रानी भागने वाली नहीं थी, रानी को पता था कि हार निश्चित है पर वो किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करने वाली थी, उन्होंने अकबर की गुलामी के बजाये – मृत्यु को चुनना उचित समझा और स्वयं को खंजर मार लिया | यह दिन था, २४ जून १५६४, जिसे आज भी उनके बलिदान दिवस के रूप में मनाते है | रानी की मृत्यु के बाद मुघल सैनिकों ने लूटपात शुरू कर दी और उनके घायल पुत्र वीर नारायण की उनके महल में हत्या कर दी |


रानी दुर्गावती एक अद्भुत और अलौकिक महिला थीं – १८ वर्ष की आयु में विवाह होना, २४ वर्ष की आयु में विधवा होना, फिर एक विशाल जनजातीय साम्राज्य की बागडोर संभालना – ५१ युद्ध लड़ना और जीतना – ३ बार मुग़लिया सेना को खदेड़ना – और प्रजा का एक माँ कि तरह भरण पोषण और रक्षा करना – इतना गौरवशाली वर्चस्व उनके कुशल शाशन, वीरता, धर्मं और आत्मा सम्मान को दर्शाता है और ऐसी महान आत्मा को हम शत शत नमन करते है |