सम्राट विक्रमादित्य :
सम्राट ये शब्द आपने कई बार सुना होगा ये सम्राट होता क्या है, सम्राट का मतलब वो राजा जिसका राज बहुत सरे राजाओं पर हो। आसान शब्दों म,में कहु तो सारे राजा सम्राट के हुक्म पर काम करते है। ऐसे कई सम्राट हुए है सम्राट युधिष्ठिर, सम्राट चद्रगुप्त मौर्या, सम्राट अशोक
लेकिन इतिहास में ऐसा एक सम्राट भी हुआ है जिसका राजपाट पूरे एशिया में था सारे राजा उसके अधीन थे लकिन ऐसा क्या हुआ उसके साथ की उसके अधीन काम करने वाले एक राजा के आदेश पर उसके हाथ पैर तोड़ दिए गए, एक आम आदमी की तरह उस सम्राट ने एक तेली के घर में तेल निकालने की नौकरी की, और ये हालत उसकी किसी युद्ध में हार के नहीं हुई बल्कि भगवन शनिदेव के प्रकोप से हुई। आप समझ ही गए होंगे की हम बात कर रहे है उज्जैन के राजा रहे सम्राट विक्रमादित्य की लेकिन क्या कारण था की शनिदेव ने विक्रमादित्य की ऐसी हालत करदी।
क्यों हुई लड़ाई सम्राट विक्रम आदित्य और शनिदेव के बीच?
सम्राट विक्रमादित्य नवरात्रि के अवसर पर रोजाना अपनी सभा मे एक ग्रह पर वाद-विवाद करते थे की कौनसा ग्रह सबसे महान है। नौवा दिन शनिदेव के बारे में था, जिसमें ज्योतिष शास्त्र के ज्ञानी वरहामीर ने शनि देव की शक्तियों के साथ उनकी महानता और धरती पर धर्म ओर न्याय बनाए रखने में उनका योगदान बताया।
लेकिन सम्राट विक्रमादित्य इस बात से संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने शनि देव को को महज न्याय की देख रेख करने वाले एक दंडाधिकारी के रूप में देखा था, इसलिए विक्रम ने कहा कि वे शनि देव को सूर्यदेव से ज्यादा सर्वश्रेष्ठ नहीं मानते।
शनि देव ने सम्राट विक्रमादित्य पर बहुत जोर डाला की वो उन्हे सर्वश्रेष्ट कहे लेकिन सम्राट को अपने न्याय और सत्यवादी होने पर पूरा भरोसा था, तब शनिदेव गुस्सा हो गए और फिर बरपाया उन्होंने सम्राट पर अपना प्रकोप
कहा जाता है की विक्रमादित्य को सबक सिखाने के लिए शनिदेव ने एक घोड़ा बेचने वाले का भेष बदल कर उज्जैनी में आ गए। वह एक विशेष प्रकार का काला घोड़ा लेकर सम्राट के राज्य में आए जो एक छलांग में धरती से आसमान पर और आसमान से वापस धरती पर आ सकता था।
सम्राट विक्रमादित्य ने उस घोड़े को खरीदने से पहले उसकी सवारी करने की मांग की और सवारी करने लगे। घोड़ा उन्हें आसमान में तो ले गया, लेकिन वापस नीचे लाने की जगह उसने उज्जैनी की सीमा से दूर विक्रम को घने जंगलों फेंक दिया। जख्मी हालत में सम्राट विक्रमादित्य जंगल से बाहर जाने का रास्ता ढूंढने लगे तभी डाकुओं ने सम्राट पर हमला कर उसका मुकुट और गहने छीन लिए। प्यास से बेचेन पानी की तलाश में जब वो नदी किनारे पहुंचे तो फिसलकर पानी के तेज बहाव मे बहते हुए बहुत दूर चले गए।
नदी में बहने के बाद धीरे-धीरे वो बेहोश हालत मे एक किनारे पर जा रुके होश आने पर वो भटकते भटकते एक गांव में जा पहुचे जहां सम्राट विक्रमादित्य एक पेड़ के नीचे बैठ गए, पेड़ के सामने एक बनिए की दुकान थी विक्रम के वहाँ बैठने से दुकान में तेजी से बिक्री होने लगी, इस चीज का एहसास जब दुकानदार को हुआ की इस परदेसी की वजह से इतने दिनों बाद उसकी दुकान बहुत अछि चली तो उसने विक्रमादित्य को अपने घर बुलाकर खाना दिया ओर नए कपड़े भी दिए। दुकानदार ने सोचा की आगे भी उसकी ऐसी ही बिक्री होती रहे तो उसने अपनी बेटी से विक्रम का विवाह करने की सोची।
जब विक्रम रात मे सो रहे थे तब दुकानदार ने अपनी बेटी को उसकी सेवा के लिए भेजा और उस लड़की को नींद आने लगी तब उसने अपना मोतियों का नौलख हार उतारकर मोर के तस्वीर के साथ लगी खूटी पर टांग दिया।
इधर शनि देव की अलौकिक शक्ति से तस्वीर में बने मोर ने उस हार को खा लिया, सुबह जब सबकी आँख खुली तो सबने देखा की सम्राट सूर्य को जल चढ़ा रहे थे सब अपने अपने कामों मे लग गए जब दुकानदार की बेटी नहाने के बाद तईयार होने लागि तो उसने अपने हार को गायब देखा, शनि देव के प्रकोप से सबने सम्राट पर हार चोरी करने का आरोप लगाया और उसे उस राज्य के राजा के पास ले गए।
सम्राट ने जैसे ही इस राजा को अपने सामने देखा तो सम्राट को अपनी मौत दिखने लागि ये राजा था चंद्रभोर और ये राज्य था तमल, आखिर कौन था ये राजा दरअसल भाऊत साल पहले विक्रमादित्य के साम्राज्य मे बस तमल एक ऐसा राज्य था जिसने सम्राट की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था और उसने उज्जैनी पर हमला कर दिया था जिससे सम्राट ने गुस्सा होकर चंद्रभोर के माथे पर गरम लोहे की सलाखों से सूर्य का निशान दाग दिया था।
तबसे चंद्रभोर विक्रमादित्य का सबसे बड़ा जानी दुश्मन बन गया था। यह तक की उसने अपने तमल राज्य मे विक्रम नाम वाले हर आदमी की हत्या करवा दी थी। चंद्रभोर ने सम्राट को चोरी की सजा सुनाते हुए उनके दोनों हाथ पेरो को तुड़वा कर अपाहिज बना दिया और मरने जैसी हालत मे उन्हे शिप्रा नदी के किनारे फिकवा दिया।
कई दिनों तक जमीन पर पड़े रहने के कारण उनके शरीर पर बीछू छीटियों और कीड़े मकोड़ों ने घर कर लिया था। इतनी तकलीफ़े झेलने के बाद भी सम्राट ने अपने न्याय और सत्यवादी धर्मनिष्ट होना नहीं छोड़ा ओर अपने फैसले से अडिग रहे,
अब शनि देव को भी उनकी इस हालत पर दया आने लगि थी तो शनि देव ने अपनी कृपा से उस रास्ते पर एक तेली को भेजा, उस तेली ने सम्राट को देखा और दया मे भरकर अपनी बेलगाड़ी मे बैठ कर घर ले आया, उसने सम्राट के शरीर को साफ किया ओर उनकी चोटों पर सरसों ओर तिल तेल की मालिश कर इलाज कराया,
जब सम्राट ठीक हुए तो उन्होंने एक आम आदमी की तरह उस टेली के यह नौकरी शुरू कर दी, तेली के एहसानों को चुकाने के लिए सम्राट वहाँ कोल्हू चलाने लगे, कुछ समय बाद उस इलाके मे घोर अकाल पड़ गया तब सम्राट ने मेघ मल्हार गा कर वहाँ बारिश कारवाई, जिससे शनि देव बहुत खुश हुए,
शानिदेव ने भी माना राजा विक्रमआदित्य का लोहा
अब शनि देव ने सम्राट के सामने आकार उन्हे सारी बातें बताई की तुम्हारे जीवन मे जितनी तकलीफ हुई है वो मेरी परीक्षा था जिसमे तुम सफल हुए, क्योंकि तुम अपने न्याय के फैसले से अटल रहे और तकलीफों के बाद भी सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ा तो शनि देव ने फिर अपनी शकितयो से सम्राट के शरीर को ठीक किया, उस लड़की का हार वापिस उसी खूटी पर मिला, सम्राट का मुकुट और उनके गहने भी उन्हे वापिस मिले और सम्राट फिरसे अपने राज महल लौट गए, और शनि देव ने भी मान लिया की सूर्य ही सबसे महान है क्योंई सूर्य से ही जीवन है और ज़िंदगी है तो कर्म है, और कर्म है तभी उसका फल है।